विक्रम संवत्: जानें कब हुई थी इसकी शुरुआत

विक्रम संवत् भारत का प्राचीन विवरण पत्र (कैलेंडर) या पंचांग है जिससे वर्ष, माह, सप्ताह, तिथि, वार आदि की गणना की जाती है। इस कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष विक्रम सम्वत 2076 है। वर्तमान काल में भारत में कई संवत या कैलेंडर प्रचलित हैं लेकिन जिस संवत को भारतीय राष्ट्र का प्रतीक कहा जा सकता है वह विक्रम संवत ही है। आज भी हम शुभ कार्यों को करने के लिये अपने प्राचीन पंचांग का ही सहारा लेते हैं जो विक्रम संवत् पर ही आधारित होता है। विक्रम संवत् गणितीय दृष्टिकोण से बहुत ही सरल और सटीक माना जाता है।

विक्रम संवत् की शुरूआत

विक्रम संवत् को भारतीय कैलेंडर या हिंदू कैलेंडर भी कहा जाता है। इसकी शुरुआत 57 ई.पू हुई थी। विक्रम संवत की शुरुआत सम्राट विक्रमादित्य ने की थी, इसीलिये इस कैलेंडर को विक्रम संवत कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि बारह महीने का एक साल और सप्ताह में सात दिन का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरु हुआ था। विक्रम संवत में महीनों का नामकरण नक्षत्रों के अनुसार हुआ है। इसकी विधि यह थी कि पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में था उसी के अनुसार माह को नाम दिया गया। विक्रम संवत के अनुसार हिंदू नव वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरु होता है। प्राचीन भारतीय शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। हिंदू धर्म में इस दिन का बड़ा महत्व है।

संवत शुरु करने की प्राचीन परंपरा

प्राचीन काल में राजाओं द्वारा अपने नाम से संवत चलाया जाता था। संवत चलाने से पूर्व राजा के सामने यह शर्त होती थी कि उसे अपनी प्रजा को ऋण मुक्त करना है। जिस राजा द्वारा अपने राज्य में मौजूद हर शख्स का ऋण चुका दिया जाता था वो अपने नाम से संवत् चला सकता था। राजा विक्रमादित्य के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने भी इस परंपरा का पालन किया था और अपने नाम से संवत चलाने से पहले प्रजा को ऋण मुक्त किया था। विक्रमादित्य ने अपने नाम से शुरु किये गये संवत् में प्रथम महीना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरु किया था। कहा जाता है कि इसी दिन से सृष्टि की प्रक्रिया शुरु हुई थी और वासंतिक नवरात्र भी इस दिन से ही शुरु होते हैं। विक्रमादित्य को इस दिन की महत्ता पता थी और इसीलिये उन्होंने विक्रम संवत शुरु करने के लिये इस दिन का चुनाव किया।

विक्रम संवत को लेकर मतभेद

विक्रम संवत् की शुरुआत 57 ई, पू मानी गयी है लेकिन कुछ विद्वान इस बात को नकारते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि विक्रम संवत की शुरुआत 544 ईसवी सन् में हुई वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इसकी शुरुआत ईसवी सन् 78 में हुई। विद्वानों का मानना है कि 'कृत संवत्' जोकि विक्रम संवत से पहले प्रचलन में था, उसी को बाद में विक्रम संवत नाम दे दिया गया। भारतीय शास्त्रों और शिलालेखों में आठवीं और नौवीं शती में विक्रम संवत् नाम इस्तेमाल किया गया है। 'वेडरावे शिलालेख' जोकि चालुक्य राजा विक्रमादित्य षष्ठ द्वारा बनवाया गया था, एक महत्वपूर्ण शिलालेख है। इस शिलालेख से पता चलता है कि चालुक्य राजा ने शक संवत की जगह चालुक्य विक्रम संवत शुरु किया। चालुक्य विक्रम संवत् की शुरुआत 1076-77 ईं की है। एक तथ्य यह भी है कि मगध के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अयोध्या और उज्जयनी पर जीत दर्ज करने के बाद खुद को विक्रमादित्य उपाधि दे दी थी। इसलिये कुछ विद्वान यह भी मानते हैं कि शायद चंद्रगुप्त ने ही विक्रम संवत की शुरुआत की थी। कुल मिलाकर कहा जाए तो विक्रम संवत् को लेकर विद्वानों में मतभेद होना स्वाभाविक सी बात है। विक्रम संवत् की प्राचीनता को देखते हुए इससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को ढूंढना भी एक चुनौती है। हालांकि मतभेदों के बाद भी यह बात स्पष्ट है कि यह भारत का सबसे प्राचीन संवत है और आज भी हिंदू धर्म के लोगों द्वारा इसका इस्तेमाल किया जाता है।

विक्रम संवत आज भी है प्रासांगिक

विक्रम संवत से हम वर्ष, माह, तिथि, वार, नक्षत्र आदि की जानकारी लेते हैं। भारत में भले ही आज पश्चिमी कैलेंडर चलता हो लेकिन मुख्य कार्यों को करने में विक्रम संवत् को ही प्राथमिकता दी जाती है। किसी भी शुभ काम जैसे विवाह, मुंडन संस्कार आदि हो या किसी महापुरुष की जन्मतिथि इन सबके लिये सबसे पहले

विक्रम संवत् में महीनों के नाम और उनके अनुसार अंग्रेजी महीनों की सूची नीचे दी गई है।

क्र.स. हिंदी महीनों के नाम अंग्रजी महीनों के नाम
1 चैत्र मार्च-अप्रैल
2 वैशाख या बैसाख अप्रैल-मई
3 ज्येष्ठ मई-जून
4 आषाढ़ जून-जुलाई
5 श्रावण जुलाई-अगस्त
6 अश्विन अगस्त-सितंबर
7 कार्तिक सितंबर-अक्टूबर
8 मार्गशीर्ष अक्टूबर-नवंबर
9 पौष नवंबर-दिसंबर
10 माघ दिसंबर-जनवरी
11 फाल्गुन जनवरी-फरवरी
12 भाद्रपद फरवरी-मार्च

विक्रम संवत् कैलेंडर पंचांग की गणनाएं

विक्रम संवत् के जरिये ही हर दिन का पंचांग भी बनता है। हर माह का हिसाब सूर्य और चंद्रमा की गति से रखा जाता है। भारतीय पंचांग को निर्धारित करने के लिये चंद्र, सूर्य और नक्षत्र प्रणाली का उपयोग किया जाता है। पूरे भारत में इसे अलग-अलग रुपों में माना जाता है। हिंदू पंचांग में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं जिन्हें शुक्ल और कृष्ण पक्ष कहा जाता है। इसके साथ ही साल में दो अयन इन दो अयनों की राशि में ही 27 नक्षत्र भ्रमण करते हैं। वर्तमान समय में बनने वाले पंचांगों में वर्ष, मास, दिन के साथ उस दिन के त्योहारों और शुभ मुहूर्तों के बारे में भी जानकारी दी जाती है।

पंचांग और हर कैलेंडर के लिये मुख्य होता है एक सप्ताह में दिनों की संख्या। आपको बता दें कि सप्ताह में कितने दिन होंगे इसके पीछे कोई भी ज्योतिषीय या प्राकृतिक योजना नहीं है। सप्ताह में सात दिनों की योजना यहूदियों और बेबिलोलियनों ने शुरु की थी ऐसा माना जाता है। मेक्सिको में एक समय सप्ताह में पांच दिनों की योजना थी। प्राचीन मिस्र वासी दस दिनों का एक सप्ताह मानते थे वहीं रोमन लोग आठ दिनों को एक सप्ताह मानते थे। विक्रम संवत् में भी सात दिनों का एक सप्ताह माना गया है।

हिंदू परिवारों में आज भी महत्वपूर्ण हे विक्रम संवत्

आज भले ही भारतीय लोग अंग्रजी कैलेंडर को ही रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल करते हों। भले ही लोगों को यह पता न हो कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार कौन सा माह और दिन चल रहा है लेकिन जब भी घर में कोई मांगलिक कार्य करना होता है तो सबसे पहले पंचांग देखा जाता है। पंचांग हिंदू कैलेंडर पर ही आधारित होता है बस इसमें दिन और मुहूर्त की सटीक जानकारी दी जाती है। गांव हो या शहर आज भी लोग शुभ तिथि निकालने के लिये पंचांग का ही इस्तेमाल करते हैं। पंचांग की मदद से ही बच्चों के जन्म से लेकर विवाह तक के मुहूर्तों की गणना की जाती है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि हिंदू पंचांग में जितनी सटीकता है उतना किसी और पंचांग में नहीं होती। विक्रम संवत् से ली गई जानकारियों से बने पंचांग में नक्षत्र, सूर्य, चंद्रमा की स्थिति पर भी गौर किया जाता है।

विक्रमादित्य कौन थे

जिस राजा के नाम पर विक्रम संवत् का नाम पड़ा है उनके बारे में हम आपको पहले भी काफी कुछ बता चुके हैं। विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे और वह अपने ज्ञान, साहस, पराक्रम और न्याय के लिये बहुत प्रसिद्ध थे। उन्हें धर्म का भी अच्छा ज्ञान था। उनके बाद विक्रमादित्य की उपाधि कई राजाओं को दी गई। आईने अकबरी और भविष्य पुराण की मानें तो विक्रमादित्य सैन परमार सम्राट थे। इसको लेकर भी मतभेद हैं कुछ लोगों का मानना है कि विक्रमादित्य लोधी राजपूत थे, हालांकि उन्हें प्रमार या परमार सिद्ध करने के लिये कई तथ्य मौजूद हैं। अपने शासनकाल के दौरान विक्रमादित्य ने भारतीय संस्कति की महक दूर-दूर तक फैलाई। विक्रमादित्य के बारे में एक अरबी लेखक ने लिखा था कि, वह लोग खुशनसीब हैं जो राजा विक्रमादित्य के राज में जन्में हैं। राजा विक्रमादित्य को कर्ताव्यप्रायणता और उदारता का प्रतीक माना जाता था। भारत के साथ-साथ नेपाल के लोग भी राजा विक्रमादित्य को एक महान राजा के रुप में याद करते हैं। आपको बता दें कि विक्रम संवत् नेपाल का राष्ट्रीय संवत् है। राजा विक्रमादित्य के सिंहासन चोरी होने के किस्से आज तक सुने जा सकते हैं। कहा जाता है चोरी होने के बाद यह सिंहासने परमार राजा भोज द्वारा बरामद किया गया।

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