चंद्र ग्रहण 2026 : आकाश में घटने वाली सबसे सुंदर और रहस्यमय घटनाओं में से एक है चंद्रग्रहण । यह वह क्षण है जब ब्रह्मांड अपनी ऊर्जा-धारा को बदलता है और पृथ्वी पर मौजूद प्रत्येक जीव उस अद्भुत परिवर्तन का साक्षी बनता है। चंद्रग्रहण का सौंदर्य इतना मोहक होता है कि दुनिया के कोने-कोने से लोग इसे देखने के लिए एकत्र होते हैं। लेकिन इसका प्रभाव केवल देखने तक सीमित नहीं—इसका वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है।
इसीलिए एस्ट्रोसेज एआई आपके लिए 2026 में घटित होने वाले सभी चंद्रग्रहणों की पूर्ण, सरल और विश्वसनीय जानकारी लेकर आया है —इस विस्तृत लेख में आप जानेंगे:
वर्ष 2026 में कितने चंद्रग्रहण होंगे
कौन-सा ग्रहण पूर्ण होगा और कौन-सा आंशिक
हर ग्रहण की तिथि, समय, अवधि
भारत और विश्व के किन क्षेत्रों में ग्रहण दिखाई देगा
धार्मिक मान्यताएं और वैदिक परंपराएं
सूतक काल कब लगेगा और कब समाप्त होगा
गर्भवती महिलाओं के लिए सावधानियां
ग्रहण के दौरान क्या करें और क्या न करें
इसके अलावा, आप और भी बहुत कुछ जानेंगे, इसलिए इसे अंत तक अवश्य पढ़ें।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंद्रग्रहण तब घटित होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाता
परिणामस्वरूप चंद्रमा या तो आंशिक रूप से या पूरी तरह पृथ्वी की छाया में ढक जाता है। इसी कारण हमें वह अजीब-सी लालिमा, धुंधलापन और रहस्यमय दृश्य दिखाई देता है जिसे ब्लड मून या लाल चंद्रमा भी कहा जाता है। लेकिन अध्यात्म कहता है “ग्रहण केवल छाया का खेल नहीं, यह चेतना का संकेत भी है।”
ग्रहण के समय ब्रह्मांडीय ऊर्जा में तीव्र परिवर्तन होता है। मन संवेदनशील हो जाता है। संकल्प की शक्ति बढ़ जाती है। साधना गहरी हो जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार चंद्रग्रहण का संबंध राहु-केतु से है। समुद्र मंथन के समय राहु ने अमृत पी लिया था, और जब उसका भेद खुल गया तो भगवान विष्णु ने उसका सिर काट दिया। तभी से राहु और केतु क्रमशः चंद्रमा और सूर्य को समय-समय पर ग्रसित करते हैं और ग्रहण की घटना बनती है।
धार्मिक रूप से ग्रहण को ऊर्जा असंतुलन का समय, साधना और मंत्र-बल की वृद्धि का समय, दोष निवारण का श्रेष्ठ काल, नकारात्मक तरंगों से बचने का चरण कहा गया है। इसी वजह से ग्रहण को अंधविश्वास नहीं बल्कि ऊर्जा-विज्ञान (Energy Science) के रूप में देखा गया है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रहण का प्रभाव पृथ्वी के सभी जीवों पर पड़ता है। खासकर मन, भावनाएँ, नींद, मानसिक ऊर्जा, स्वास्थ्य, गर्भस्थ शिशु, राशियों का भावफल इन सभी पर ग्रहण सूक्ष्म असर डालता है।
लोग चंद्रग्रहण को खुशी से आकाश में देखते हैं, लेकिन वैदिक परंपरा मन और शरीर को सुरक्षित रखने की सलाह देती है। इसलिए इसकी वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों व्याख्याएं महत्वपूर्ण हैं।
ग्रहण के समय पृथ्वी पर किरणों की मात्रा बदल जाती है, इसलिए मनुष्य को सावधानी रखने की सलाह दी जाती है।
भोजन करना
नए कार्य की शुरुआत
शिवलिंग या मूर्ति स्पर्श
बाहर घूमना
बाल कटवाना या दाढ़ी बनाना
अनावश्यक स्क्रीन देखना
झगड़ा, गुस्सा या नकारात्मक बातें
इनसे मन और ऊर्जा असंतुलित हो सकते हैं।
ग्रहण का समय आध्यात्मिक उन्नति का श्रेष्ठ अवसर है।
मंत्र जप (गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय, चंद्र मंत्र)
ध्यान
भजन
मानसिक शांतता
संकल्प लेना
आत्मविश्लेषण (Introspection)
ग्रहण के बाद स्नान और घर में शुद्धि
क्योंकि ग्रहण में एक मंत्र जप का फल साधारण दिनों की तुलना में अनेक गुना बढ़ जाता है।
गर्भवती महिलाओं पर ग्रहण का प्रभाव वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों रूप से महत्वपूर्ण माना गया है।
रेडिएशन, मानसिक तरंगें और आसपास की ऊर्जा गर्भस्थ शिशु पर असर डाल सकती हैं।
ग्रहण देखना
कैंची, चाकू या नुकीली वस्तुओं का प्रयोग
सिलाई, कढ़ाई या काटने वाले कार्य
बाहर निकलना
ग्रहण अवधि में भोजन
मंत्र जप
धार्मिक पुस्तक पढ़ना
सुखद संगीत
शांत वातावरण
ग्रहण बाद स्नान करके शुद्ध भोजन लेना
यह सब शिशु के मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए लाभकारी माना जाता है।
ग्रहण का अर्थ बुरा होना नहीं है। यह वह क्षण है जब ब्रह्मांड धीमी गति से कंपन बदलता है, मनुष्य की आत्मा गहराई में उतर सकती है और हमारी साधना का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। ग्रहण हमें यह सिखाता है कि, “छाया आती है, पर छाया कभी टिकती नहीं।”
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रात्रि के शांत आकाश में चमकता चंद्रमा सदैव से मानव मन को आकर्षित करता आया है। परंतु कभी–कभी यह चंद्रमा अचानक मंद पड़ जाता है, उसका प्रकाश सुस्त हो जाता है, और वह छाया में डूबा हुआ प्रतीत होता है। यही वह क्षण है जिसे हम चंद्रग्रहण कहते हैं।
हम जानते हैं कि ,चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है और लगातार पृथ्वी का चक्कर लगाता है। पृथ्वी स्वयं सूर्य का चक्कर लगाती है और अपने अक्ष पर घूमती भी है। हर महीने चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा तो करता है, पर सब समय ग्रहण नहीं लगता , क्योंकि चंद्रमा की कक्षा थोड़ी झुकी हुई है।
लेकिन कुछ विशिष्ट क्षण ऐसे आते हैं जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में आ जाते हैं , और चंद्रमा तथा सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है। इस स्थिति में सूर्य की रोशनी सीधे चंद्रमा तक नहीं पहुँच पाती, और चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश कर जाता है। यही घटना चंद्रग्रहण कहलाती है।
अद्भुत बात यह है कि इस समय चंद्रमा हमारे सामने रहता है—लेकिन फिर भी उसका प्रकाश मंद हो जाता है। विज्ञान इसे एक प्राकृतिक खगोलीय संयोग मानता है, जबकि अध्यात्म इसे ऊर्जा परिवर्तन का क्षण बताता है।
चंद्रग्रहण हर बार एक जैसा नहीं होता। यह पृथ्वी की छाया और प्रकाश की स्थिति पर निर्भर करता है। मुख्यतः तीन प्रकार के चंद्रग्रहण माने गए हैं।
यह ग्रहण सचमुच देखने योग्य चमत्कार होता है। जब, पृथ्वी पूरी तरह सूर्य का प्रकाश रोक देती है, और संपूर्ण चंद्रमा पृथ्वी की गहरी छाया (उम्ब्रा) में आ जाता है, तो चंद्रमा अकसर लाल, तांबे या गुलाबी रंग का दिखाई देता है। इसे ही सुपर ब्लड मून कहा जाता है।
विज्ञान के अनुसार पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य की लाल किरणों को मोड़कर चंद्रमा पर डालता है। यही वजह है कि ग्रहण के दौरान चंद्रमा में एक अलौकिक, मनमोहक, रहस्यमयी चमक दिखती है। अध्यात्म में इसे ऊर्जा परिवर्तन का उच्च क्षण माना गया है।
इस स्थिति में पृथ्वी की छाया का सिर्फ एक हिस्सा चंद्रमा पर पड़ता है। चंद्रमा का कुछ भाग अंधकार में और कुछ भाग प्रकाश में रहता है।
यह ग्रहण पूर्ण ग्रहण की तुलना में छोटा और कम प्रभावशाली होता है, परंतु वैज्ञानिक रूप से यह समान रूप से महत्वपूर्ण है। अध्यात्म में इसे मध्यम प्रभाव वाला ग्रहण माना गया है।
यह ग्रहण बहुत सूक्ष्म होता है। इसमें, चंद्रमा पृथ्वी की बाहरी हल्की छाया (पेनुम्ब्रा) में प्रवेश करता है। चंद्रमा पर हल्का धुंधलापन दिखाई देता है, जैसे उस पर एक फीकी राख जम गई हो।
वैज्ञानिकों के लिए यह एक वास्तविक ग्रहण है, लेकिन धार्मिक या आध्यात्मिक रूप से यह ग्रहण नहीं माना जाता , इसलिए इसका सूतक काल भी नहीं लगता ।
सनातन वैदिक परंपरा में ग्रहण को केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि ऊर्जात्मक परिवर्तन का समय माना गया है। इसी कारण सूतक काल का नियम आता है।
इसका निर्धारण 2026 के चंद्रग्रहण की तिथियों के आधार पर किया जाएगा—यानी वर्ष 2026 में कितने चंद्रग्रहण होंगे, उनकी अवधि क्या होगी और उनका भारत में दृश्यता क्षेत्र क्या है।
चंद्रग्रहण हमें यह दिखाता है किब्रह्मांड कितना व्यवस्थित है, प्रकृति कितनी सटीकता से कार्य करती है, और हमारी परंपराएँ खगोल-विज्ञान एवं ऊर्जा विज्ञान से कितनी गहराई से जुड़ी हैं। चाहे आप इसे वैज्ञानिक दृष्टि से देखें या आध्यात्मिक दृष्टि से— चंद्रग्रहण मानव अनुभव का एक आकर्षक, शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक क्षण है।
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यदि हम वर्ष 2026 में लगने वाले चंद्र ग्रहण 2026 (Chandra Grahan 2026) की बात करें तो इस वर्ष में केवल दो चंद्र ग्रहण लगेंगे। पहला चंद्र ग्रहण 3 मार्च 2026 को लगेगा और दूसरा चंद्रग्रहण 28 अगस्त 2026 को लगेगा। इनमें से केवल पहला चंद्रग्रहण ही भारतवर्ष में दृश्यमान होगा।
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पहला चन्द्र ग्रहण 2026 - खग्रास चंद्रग्रहण |
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तिथि |
दिन तथा दिनांक |
चन्द्र ग्रहण प्रारंभ समय |
चन्द्र ग्रहण समाप्त समय |
दृश्यता का क्षेत्र |
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फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा |
मंगलवार 3 मार्च 2026 |
दोपहर 15:20 बजे से |
सायंकाल 18:47 बजे तक |
पश्चिम एशिया के देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक, ईरान, आदि के अतिरिक्त लगभग संपूर्ण एशिया में, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, दक्षिणी एवं उत्तरी अमेरिका और रूस में दृश्यमान होगा। भारत में यह खग्रास चंद्र ग्रहण ग्रस्तोदय के रूप में दिखेगा क्योंकि भारत के किसी भी क्षेत्र में जब चंद्रोदय होगा, उससे काफी पहले ही यह खग्रास चंद्र ग्रहण प्रारंभ हो चुका होगा इसलिए भारत के किसी भी क्षेत्र में इस खग्रास चंद्र ग्रहण का प्रारंभ का ग्रास प्रारंभ तथा ग्रहण मध्य परमग्रास देखा नहीं जा सकेगा। भारत के केवल पूर्वी सुदूर राज्यों जैसे बंगाल के उत्तरी पूर्वी क्षेत्र, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर, असम, अरुणाचल प्रदेश, आदि में इस ग्रहण की खग्रास समाप्ति तथा ग्रहण समाप्ति देखी जा सकती है। इसके अतिरिक्त शेष भारत में जब चंद्रोदय होगा तब तक खग्रास समाप्त हो चुका होगा तथा केवल ग्रहण समाप्ति ही दृष्टिगोचर होगी। |
नोट: उपरोक्त तालिका में दिया गया ग्रहण 2026 (Grahan 2026) का समय भारतीय समय अनुसार है। यह चन्द्र ग्रहण भारत में दृश्य मान होगा इसलिए भारत में इस चन्द्र ग्रहण का धार्मिक प्रभाव भी होगा और इसका सूतक काल भी प्रभावी होगा। यह इस वर्ष का एकमात्र ऐसा ग्रहण है जो भारत में देखा जा सकेगा।
3 मार्च 2026 को लगने वाला यह चंद्र ग्रहण एक खग्रास चंद्रग्रहण है जिसे पूर्ण चंद्रग्रहण भी कह सकते हैं। यह खग्रास चंद्रग्रहण सिंह राशि और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में घटित होगा। इस ग्रहण का सूतक काल 3 मार्च 2026 को प्रातः काल 6:20 बजे से प्रारंभ हो जाएगा और ग्रहण समाप्ति के साथ ही समाप्त होगा। ग्रहण मोक्ष के उपरांत चंद्रमा के दर्शन करना और तर्पण करने के बाद सभी धार्मिक कार्यक्रम संपादित किया जा सकते हैं और ऐसा करना आपको लाभान्वित करेगा।
यह 7चंद्र ग्रहण पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र सिंह राशि में घटित होगा इसलिए सिंह राशि वालों के लिए और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के जातकों के लिए विशेष रूप से कष्टकारी साबित हो सकता है इसलिए विशेष रूप से सिंह राशि के जातकों को दान और जप तथा पाठ करना चाहिए।
इस चंद्र ग्रहण के प्रभाव से मेष राशि वालों के भाग दौड़ बढ़ेगी और खर्चों में अधिकता रहेगी।
वृषभ राशि के जातकों को कार्यों में सफलता प्राप्त होगी और धन लाभ के योग बनेंगे।
मिथुन राशि के जातकों के जीवन में प्रगति होगी। उनके उत्साह में बढ़ोतरी होगी और पुरुषार्थ बढ़ने से वह मेहनत करने में आगे बढ़ेंगे।
कर्क राशि के जातकों को धन संबंधित हानि उठानी पड़ सकती है। आपके खर्च भी बढ़ेंगे और यात्राओं की संख्या बढ़ सकती है।
सिंह राशि में चंद्रग्रहण घटित होने से आपको शारीरिक कष्ट, चोट लगने का भय और धन संबंधी परेशानियां सामने आ सकती हैं।
कन्या राशि के जातकों को परेशानियों और कार्यों में रुकावट तथा धन हानि का सामना करना पड़ सकता है।
तुला राशि के जातकों को विभिन्न प्रकार के लाभ तथा धन और सुख की प्राप्ति होने के योग बनेंगे।
वृश्चिक राशि के जातकों को शारीरिक कष्ट, मानसिक चिंता, अवांछित भय और संघर्ष करने की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
वहीं धनु राशि के जातकों को संतान संबंधी चिंताएं परेशान कर सकती हैं।
मकर राशि के जातकों को दुर्घटना और विरोधियों का भय रहेगा। खर्चों में अधिकता आपको परेशान करेगी।
कुंभ राशि के जातकों को जीवनसाथी से संबंधित कष्ट का सामना करना पड़ सकता है।
वहीं मीन राशि के जातकों को शारीरिक रोग, गुप्त चिंताएं और बनते हुए कार्यों में अड़चनें परेशान कर सकती हैं।
सिंह राशि और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में होने के कारण स्त्रियों और क्रय विक्रय करने वाले जातकों तथा शिल्प कला से संबंधित लोगों को परेशानी उठानी पड़ सकती है। मंगलवार के दिन यह चंद्र ग्रहण होने से अग्निकांड और चोरों का भय हो सकता है तथा पश्चिमी मध्य प्रदेश और राजस्थान के पूर्वी क्षेत्रों में कुछ समस्याएं देखने को मिल सकती हैं। वहीं फाल्गुन मास में चंद्र ग्रहण घटित होने के कारण ऐसे व्यक्तियों, जो संगीत से जुड़े क्षेत्र में हैं, स्त्रियों, क्षत्रियों और तपस्या करने वाले जातकों को पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है।
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दूसरा चन्द्र ग्रहण 2026 - खण्डग्रास चंद्रग्रहण |
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तिथि |
दिन तथा दिनांक |
चन्द्र ग्रहण प्रारंभ समय |
चन्द्र ग्रहण समाप्त समय |
दृश्यता का क्षेत्र |
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श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा |
शुक्रवार 28 अगस्त 2026 |
प्रात: काल 8:04 बजे से |
दोपहर 11:22 बजे तक |
अफ्रीका, उत्तर दक्षिण अमेरिका और यूरोप के अधिकतर क्षेत्रों, दक्षिणी पश्चिमी एशिया के देशों, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, ईरान, सऊदी अरब, शारजाह, हिंद-प्रशांत महासागर (भारत में दृश्यमान नहीं) |
नोट: उपरोक्त तालिका में दिया गया ग्रहण 2026 (Grahan 2026) का समय भारतीय समय अनुसार है। यह चन्द्र ग्रहण भारत में दृश्य मान नहीं होगा इसलिए इसका कोई भी सूतक या धार्मिक प्रभाव मान्य नहीं होगा। यह ग्रहण कुम्भ राशि शतभिषा नक्षत्र में लगेगा।
उपरोक्त खण्डग्रास चंद्रग्रहण श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को शुक्रवार के दिन 28 अगस्त 2026 को लगेगा। यह ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं है इसलिए इसका कोई सूतक भी मान्य नहीं होगा और न ही इसका कोई धार्मिक प्रभाव होगा इसलिए इस ग्रहण के दौरान आप सभी कार्य निर्विवाद रूप से संपादित कर सकते हैं।
(विज्ञान, अध्यात्म और परंपरा का सुंदर संगम)
चंद्रग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना नहीं है—यह प्रकृति का वह क्षण है जब ब्रह्मांड की ऊर्जाएँ अत्यधिक सक्रिय हो जाती हैं। सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में आते हैं, और इस ऊर्जा-संरेखण को भारतीय अध्यात्म में विशेष आध्यात्मिक अवसर के रूप में माना गया है।
वैज्ञानिक दृष्टि से चंद्रग्रहण एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन अध्यात्म कहता है कि इस दौरान हमारे मन, भावनाओं और ऊर्जा-चक्रों पर चंद्रमा का प्रभाव बढ़ जाता है इसीलिए, इस समय किया गया जाप, साधना और दान सामान्य दिनों की तुलना में कई गुना फलदायी माना गया है।
चंद्रग्रहण का स्पर्श (आरंभ) से लेकर उसके मोक्ष (समाप्ति) तक चलने वाली अवधि को सूतक कहा जाता है। यह समय ऊर्जा-संवेदनशील होने के कारण आध्यात्मिक अभ्यास के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
नीचे बताए गए उपाय न केवल परंपरा पर आधारित हैं बल्कि मन, मानसिक ऊर्जा और चंद्र-तत्व से जुड़े वैज्ञानिक सिद्धांतों से भी सामंजस्य रखते हैं।
सूतक काल में वातावरण में नकारात्मक आयन बढ़ते हैं। ऐसे समय में मंत्र-जप मन को स्थिर करता है और सकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है।भजन, ध्यान और शांति पाठ आपके मानसिक तनाव, भय और चिंता को कम करते हैं।
चंद्रमा मन, भावनाओं और जल-तत्व का कारक है। ग्रहण के दौरान उसका प्रभाव अनिश्चित हो सकता है। “ ॐ सोम सोमाय नमः ” या अन्य चंद्र मंत्रों का जाप मानसिक शांति, भावनात्मक संतुलन और स्वास्थ्य में सुधार लाता है।
चंद्रग्रहण में राहु/केतु का प्रभाव प्रमुख होता है। इसलिए—उनके मंत्रों का जाप और तदनुसार वस्तुओं का दान विशेष लाभ देता है। यह जीवन में बाधाएँ, असफलताएँ और अनचाही रुकावटें कम करता है।
प्राचीन ग्रंथों में ग्रहण के तुरंत बाद स्नान को अनिवार्य माना गया है। विज्ञान कहता है कि स्नान त्वचा और वातावरण में मौजूद सूक्ष्म कीटाणुओं को हटाता है।स्नान के बाद भगवान की मूर्तियों का शुद्धिकरण करें। घर में गंगाजल का छिड़काव सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है।
यदि कोई व्यक्ति गंभीर या असाध्य बीमारी से पीड़ित है, तो चंद्रग्रहण के दौरान— “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।। ” का जाप बहुत ही तेज गति से फल देता है।
यह मंत्र शरीर की रोग-प्रतिरोधक शक्ति और मानसिक स्थिरता बढ़ाता है।
यदि जीवन में संकट, बाधाएँ या शत्रु-कृत परेशानियाँ हों—ग्रहण के दौरान हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ अत्यंत प्रभावी माना गया है। यह नकारात्मक शक्तियों से रक्षा देता है।
ग्रहण एक ऐसा क्षण है जब मंत्रों की कंपन शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।जिस मंत्र को आप सिद्ध करना चाहते हैं, उसका जाप निरंतर करें। यह वह समय है जब साधना तेज गति से परिणाम देती है।
यदि आप—
शनि की ढैया
या शनि की साढ़ेसाती
से प्रभावित हैं, तो ग्रहण की अवधि में शनि मंत्र जाप बेहद लाभदायक है।
ग्रहण के मोक्ष के बाद सुंदरकांड का पाठ करने से मांगलिक दोष में शांति मानी गई है।
चंद्रग्रहण के बाद दान करना अत्यंत शुभ माना गया है। दान से राहु-केतु दोष शांत होते हैं।
✔ काला तिल ✔ काले वस्त्र ✔ उड़द, आटा, चावल, दाल ✔ सतनजा ✔ श्वेत वस्त्र
इनका दान विशेष फल देता है, लेकिन संकल्प ग्रहण के दौरान ही लें।
यदि संभव हो तो सूतक काल में या ग्रहण के तुरंत बाद नदी-स्नान करें। यह ऊर्जा-शुद्धि और मानसिक शांति दोनों प्रदान करता है।
यदि किसी विशेष उद्देश्य के लिए जाप न करना चाहें, तो—
नवग्रह मंत्र
गायत्री मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र
सर्वोत्तम और सार्वभौमिक माने गए हैं।
आप निम्न पाठ भी कर सकते हैं—
श्री दुर्गा चालीसा
श्री विष्णु सहस्रनाम
श्रीमद्भागवत गीता
श्री गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र
श्री रामरक्षा स्तोत्र
ये आपके घर में दिव्य ऊर्जा का संचार करते हैं।
मोक्ष के बाद ताजी रसोई बनाना और परिवार/अतिथियों को खाना खिलाना शुभ फल देता है। यह घर की समृद्धि और सौभाग्य बढ़ाता है।
गर्भवती महिलाओं पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है। इसलिए—
पेट पर गेरू से स्वास्तिक बनाएं।
सिर पर पल्ला रखें और उस पर भी स्वास्तिक या ‘ॐ’ बनाएं।
यह शुभ कंपन (Positive Vibrations) देता है।
सूतक शुरू होने से पहले ही भोजन और पेय में तुलसीदल या कुशा रख दें। यह जीवनदायी और ऊर्जा-सुरक्षित माना जाता है।
ऊर्जा असंतुलित होने के कारण यह समय शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं।
ग्रहण की किरणें भोजन में सूक्ष्म परिवर्तन लाती हैं, इसलिए इससे बचें।
ऊर्जा असंगति के कारण यह अनुचित माना गया है।
मंदिर में प्रवेश या मूर्ति-पूजन से बचें।
तुलसी पौधे को न छुएँ
तुलसी अत्यंत संवेदनशील ऊर्जा ग्रहण करती है।
कैंची, चाकू, सुई आदि का उपयोग टालें।
ग्रहण काल में जागरण को शुभ माना गया है।
“विधुन्तुद नमस्तुभ्यं सिंहिका नन्दनाच्युत। दानेनानेन नागस्य रक्ष मां वेधजाद्भयात्॥”
अर्थ: हे सिंहिका के पुत्र अच्युत राहु! नाग-दान के द्वारा वेधज (ग्रहण) से उत्पन्न भय से मेरी रक्षा करें।
“तमोमय महाभीम सोमसूर्यविमर्दन। हेमताराप्रदानेन मम शान्तिप्रदो भव॥”
अर्थ: हे अंधकारमय, सूर्य-चंद्रमा को ग्रसित करने वाले महाभीम राहु! सुवर्ण तारा के दान से मुझे शांति प्रदान करें।
चंद्रग्रहण हमें डराने नहीं आता—यह हमें रुक कर, भीतर झांककर, और अपनी ऊर्जा को सही दिशा में मोड़ने का अवसर देता है।
विज्ञान कहता है—यह प्रकृति का खगोलीय चमत्कार है।अध्यात्म कहता है—यह साधना और शांति का सर्वोत्तम काल है
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हमें उम्मीद है कि चंद्र ग्रहण 2026 से संबंधित एस्ट्रोसेज का यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपके लिए बहुत उपयोगी साबित होगा। इस लेख को पसंद करने एवं पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
1. चंद्रग्रहण क्या होता है?
चंद्रग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है, जिससे सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुँच पाता। इसके कारण चंद्रमा पृथ्वी की छाया में ढक जाता है और ग्रहण दिखाई देता है।
2. वर्ष 2026 में कितने चंद्रग्रहण लगेंगे?
2026 में कुल दो चंद्रग्रहण लगेंगे—3 मार्च 2026 और 28 अगस्त 2026 को।
3. चंद्रग्रहण 2026 भारत में कब दिखाई देगा?
3 मार्च 2026 वाला पहला चंद्रग्रहण भारत में ग्रस्तोदय के रूप में दिखाई देगा।
28 अगस्त 2026 वाला दूसरा ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए उसका सूतक मान्य नहीं होगा।