ग्रहण 2026 (Grahan 2026) के बारे में ज्यादा जानकारी देने के लिए तथा वर्ष 2026 में होने वाले ग्रहणों (Grahan 2026) के विस्तृत और व्यापक विवरण को प्रस्तुत करने से पहले, हम एस्ट्रोसेज एआई के सभी सम्मानित पाठकों का हृदय से अभिनंदन करते हैं और उन्हें नए वर्ष 2026 की ढेरों शुभकामनाएं देते हैं। हर नया वर्ष अपने साथ अनेक खगोलीय घटनाएँ लेकर आता है, और उनमें ग्रहणों का विशेष महत्व होता है। इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए, हम आपके लिए वर्ष 2026 में लगने वाले सभी ग्रहणों—चाहे वे सूर्य ग्रहण 2026 (Surya Grahan 2026) हों या चंद्र ग्रहण 2026 (Chandra Grahan 2026)— से संबंधित महत्वपूर्ण, गहन और सूक्ष्म जानकारियाँ एक ही स्थान पर संकलित कर लेकर आए हैं।
इस लेख में आप जानेंगे कि वर्ष 2026 में ग्रहण कब-कब लगेंगे, उनका वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व क्या है, वे किन देशों या क्षेत्रों में दिखाई देंगे, और उनका संभावित प्रभाव किस प्रकार विभिन्न राशियों, जीवन क्षेत्रों या प्राकृतिक स्थितियों पर पड़ सकता है।
यह विस्तृत आर्टिकल एस्ट्रोसेज एआई के प्रसिद्ध और अनुभवी ज्योतिषाचार्य डॉ मृगांक शर्मा द्वारा गहन अध्ययन और विश्लेषण के आधार पर तैयार किया गया है। हमें पूर्ण विश्वास है कि यह लेख न केवल आपको 2026 के ग्रहणों के बारे में सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करेगा, बल्कि आपको इन खगोलीय घटनाओं को समझने और उनके अनुरूप अपने जीवन में सार्थक बदलाव लाने में भी सहायता करेगा।
हम आशा करते हैं कि यहाँ साझा की गई जानकारी आपके ज्ञान को समृद्ध करेगी और आने वाले वर्ष को अधिक योजनाबद्ध, सकारात्मक और सफल बनाने में आपका मार्गदर्शन करेगी।
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इस विषय को गहराई से समझने से पहले सबसे मूल और आवश्यक प्रश्न यह है कि ग्रहण (Eclipse) वास्तव में होता क्या है? जब तक हम इस प्राकृतिक घटना की वैज्ञानिक संरचना को नहीं समझेंगे, तब तक ग्रहण के प्रभावों, महत्व और इसके आध्यात्मिक पहलुओं को जानने की प्रक्रिया अधूरी ही रहेगी।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो ग्रहण एक अत्यंत महत्वपूर्ण और अद्भुत खगोलीय घटना है, जो सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की विशिष्ट स्थितियों तथा उनकी निरंतर गति के कारण उत्पन्न होती है। सूर्य हमारे ग्रह के लिए ऊर्जा और प्रकाश का मुख्य स्रोत है। पृथ्वी सूर्य के प्रकाश को ग्रहण करती है, और वहीं सूर्य का प्रकाश चंद्रमा पर परावर्तित होकर उसे प्रकाशित करता है। परंतु कभी-कभी अंतरिक्ष में इन तीनों खगोलीय पिंडों की स्थिति इस प्रकार बन जाती है कि वे एक सीधी रेखा में आ जाते हैं और इनमें से एक पिंड दूसरे का प्रकाश कुछ समय के लिए रोक देता है।
उदाहरण के लिए, सूर्य ग्रहण में पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा आ जाता है, जिससे सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के कुछ हिस्सों तक नहीं पहुंच पाता है। इसी प्रकार चंद्र ग्रहण में पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आकर चंद्रमा पर सूर्य का प्रकाश पड़ने से रोक देती है। इन असाधारण पलों में पृथ्वी या चंद्रमा का एक भाग अस्थायी रूप से अंधकारमय या मंद प्रकाश वाला हो जाता है। यही अवस्था वैज्ञानिक रूप से ग्रहण कहलाती है।
आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो ग्रहण को ब्रह्मांड का एक ऐसा क्षण माना जाता है जब ऊर्जा-चक्र, प्रकृति और सूक्ष्म तरंगों में परिवर्तन होता है। कई परंपराओं में इसे आत्मचिंतन, साधना और मानसिक शुद्धि का विशेष समय माना जाता है।
दूसरी ओर ज्योतिष के अनुसार, ग्रहण हमारी भावनाओं, विचारों, निर्णयों और जीवन के कई पहलुओं पर सूक्ष्म प्रभाव डाल सकते हैं। यही कारण है कि एस्ट्रोसेज एआई जैसे प्रतिष्ठित प्लेटफॉर्म पर हम सभी ग्रहणों से संबंधित जानकारी—वैज्ञानिक तथ्यों से लेकर आध्यात्मिक दृष्टिकोण तक एक स्थान पर प्रस्तुत करते हैं, ताकि पाठक न केवल ज्ञान प्राप्त करें, बल्कि उस ज्ञान का सकारात्मक उपयोग अपने जीवन में कर सकें।
संक्षेप में, ग्रहण सिर्फ एक खगोलीय प्रक्रिया नहीं, बल्कि ज्ञान, विज्ञान और आत्मबोध का संगम है, जिसे समझ कर हर व्यक्ति अपने जीवन को अधिक जागरूक, संतुलित और उन्नत बना सकता है।
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अब, जब हम ग्रहण की मूल अवधारणा को समझ चुके हैं, तो आइए इस ज्ञान यात्रा को आगे बढ़ाते हुए यह विस्तार से जानने का प्रयास करें कि वर्ष 2026 में ग्रहण कब-कब लगने वाले हैं । यह वर्ष खगोलीय घटनाओं के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि इसमें कई ऐसे ग्रहण घटित होंगे जो न सिर्फ वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के लिए, बल्कि ज्योतिष प्रेमियों, आध्यात्मिक साधकों और सामान्य जिज्ञासु पाठकों के लिए भी अत्यधिक रोचक और ज्ञानवर्धक सिद्ध होंगे।
इस लेख में हम आपको अत्यंत व्यवस्थित और सरल रूप में बताएँगे कि सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण किस दिन, किस तिथि, किस समय और कितने समय की अवधि के लिए लगेंगे । साथ ही आप विस्तारपूर्वक यह भी जान पाएंगे कि ग्रहण 2026 (Grahan 2026) पृथ्वी के किन-किन देशों, क्षेत्रों या शहरों से दिखाई देंगे, और कहाँ-कहाँ यह बिल्कुल भी दृष्टिगोचर नहीं होंगे।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, ग्रहण पृथ्वी–चंद्रमा–सूर्य की विशेष स्थितियों का परिणाम होते हैं, इसलिए इनकी सटीक भविष्यवाणी खगोलशास्त्र की सूक्ष्म गणनाओं पर आधारित होती है। इस लेख में आप न केवल ग्रहण का समय और स्थान जानेंगे, बल्कि यह भी समझेंगे कि खगोल विज्ञान इन्हें कैसे निर्धारित करता है और इन गणनाओं का वास्तविक महत्व क्या है।
साथ ही, भारतीय परंपरा में ग्रहण को केवल एक खगोलीय घटना भर नहीं माना जाता, बल्कि इसे ऊर्जा परिवर्तन, मानसिक शुद्धि, आध्यात्मिक जागृति और साधना के विशेष अवसर के रूप में देखा जाता है। ऐसे में, इस लेख में हम ग्रहण के ज्योतिषीय और धार्मिक महत्व को भी विस्तार से समझाने का प्रयास करेंगे जैसे कौन से ग्रहण शुभ फल देते हैं, किन राशियों पर ग्रहण का अधिक प्रभाव पड़ता है, और किस प्रकार ग्रहण जीवन की ऊर्जा और मानसिक तरंगों को प्रभावित करता है।
यदि आपकी जन्मपत्रिका या राशि पर ग्रहण दोष (Grahan Dosh) का प्रभाव पड़ रहा है और आप इससे चिंतित हैं, तो यह लेख आपके लिए बेहद उपयोगी सिद्ध होगा। हम यहाँ आपको बताएँगे कि ग्रहण दोष से कैसे बचा जाए, उसके दुष्प्रभावों को किस प्रकार कम या समाप्त किया जा सकता है, और जीवन में उत्तम सफलता, धन-समृद्धि, सौभाग्य, मानसिक शांति और सकारात्मकता प्राप्त करने के लिए कौन से विशेष और प्रभावी उपाय किए जाने चाहिए।
एस्ट्रोसेज एआई का उद्देश्य सिर्फ जानकारी प्रदान करना नहीं, बल्कि आपको जागरूक, समर्थ और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाना है इसलिए यह लेख आपको न केवल वर्ष 2026 के ग्रहणों की विस्तृत जानकारी देगा, बल्कि जीवन में संतुलन, सकारात्मक ऊर्जा और सफलता प्राप्त करने का मार्ग भी दिखाएगा।
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वर्ष 2026 खगोलीय घटनाओं के लिहाज़ से अत्यंत महत्वपूर्ण रहने वाला है, क्योंकि इस वर्ष आकाश में कई ऐसी विलक्षण स्थितियां बनेंगी जो हमें सूर्य और चंद्रमा के अनोखे रूपों का दर्शन कराएँगी।
इस वर्ष कुल मिलाकर दो सूर्य ग्रहण और दो चंद्र ग्रहण घटित होंगे। इन ग्रहणों में से कुछ ऐसे होंगे जो भारत में दिखाई नहीं देंगे , जबकि शेष दृश्यमान होंगे। यहाँ एक महत्वपूर्ण बात ध्यान देने योग्य है कि ग्रहण का सूतक काल (Sutak Kaal) केवल उन्हीं स्थानों पर मान्य होता है, जहाँ ग्रहण प्रत्यक्ष रूप से आकाश में नजर आता है। अतः वर्ष 2026 के सभी ग्रहणों में से भारत में केवल एक ही चंद्र ग्रहण स्पष्ट रूप से दिखाई देगा। यही कारण है कि उस एक चंद्र ग्रहण का सूतक भारत में पूर्णतः मान्य होगा , जबकि बाकी सभी ग्रहणों का सूतक काल भारत में लागू नहीं होगा, क्योंकि वे हमारे देश से दृश्य नहीं होंगे।
अब आपके मन में स्वाभाविक रूप से निम्नलिखित कुछ जिज्ञासाएँ जन्म ले रही होंगी:
जब हम ग्रहण 2026 की चर्चा कर रहे हैं तो सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण वास्तव में होते क्या हैं?
धार्मिक और ज्योतिषीय परंपराओं में सूतक काल को इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है?
वर्ष 2026 में सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण कब, किस दिन, किस तिथि और किस समय पर घटित होंगे?
इनकी अवधि कितनी होगी तथा ये किन-किन देशों और क्षेत्रों में दिखाई देंगे?
ब्रह्मांड की विशालता और खगोलीय घटनाओं की जटिलता को समझना हमेशा रोमांचक होता है। फिलहाल हम आगे बढ़ते हैं और इन सभी ग्रहणों का वैज्ञानिक विश्लेषण , उनका ज्योतिषीय अर्थ , उनका धार्मिक महत्व , तथा उनकी दृश्यता और सूतक काल से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारियों को विस्तारपूर्वक आपके सामने प्रस्तुत करते हैं।
एस्ट्रोसेज एआई के इस विशेष लेख का उद्देश्य केवल तथ्य प्रस्तुत करना नहीं है, बल्कि हमारा प्रयास है कि आप ब्रह्मांड के रहस्यों को समझते हुए अपने जीवन को अधिक जागरूक, संतुलित, ऊर्जावान और सफल बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकें।
तो आइए अब हम वर्ष 2026 के सभी सूर्य और चंद्र ग्रहणों की विस्तृत जानकारी के संसार में प्रवेश करते हैं और जानते हैं कि यह खगोलीय वर्ष आपके लिए क्या-क्या नए रहस्य, अवसर और सीख लेकर आने वाला है।
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सूर्य ग्रहण ब्रह्मांड की उन अद्भुत घटनाओं में से एक है, जिसे देखकर मानव सदियों से आश्चर्य और जिज्ञासा से भर उठता है। यह केवल एक खगोलीय दृश्य नहीं, बल्कि सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा के बीच बनने वाली अत्यंत सटीक और वैज्ञानिक स्थिति का परिणाम है। जब पृथ्वी अपने नियत पथ पर सूर्य की परिक्रमा कर रही होती है और उसी समय चंद्रमा भी पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए एक विशेष बिंदु पर पहुँच जाता है, तब एक अनूठी स्थिति बनती है— चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के ठीक मध्य आ जाता है । यही वह पल है जब सूर्य की किरणें चंद्रमा के कारण पृथ्वी के एक हिस्से तक नहीं पहुंच पाती हैं, और उस क्षेत्र में क्षणिक अंधकार या मंद प्रकाश का वातावरण बन जाता है। इस अद्भुत घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो सूर्य ग्रहण तभी संभव होता है जब चंद्रमा अमावस्या की अवस्था में होता है और उसकी स्थिति पृथ्वी-सूर्य की सीधी रेखा में आ जाती है। यह स्थिति बेहद सटीक होती है, थोड़ा सा विचलन होने पर ग्रहण दिखाई नहीं देता। यह प्रकृति के गणित और खगोलीय नियमों की अद्वितीय सटीकता का जीवंत प्रमाण है।
सूर्य ग्रहण कई रूपों में दिखाई दे सकता है, जो चंद्रमा और सूर्य के बीच की दूरी तथा उनकी आपसी स्थिति पर निर्भर करता है।
जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है , तो सूर्य का सम्पूर्ण प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता है। उस क्षेत्र में कुछ समय के लिए दोपहर में भी चारों ओर रात जैसा अंधकार छा जाता है। यह दृश्य अत्यंत दुर्लभ और देखने योग्य होता है। पूर्णता के क्षण में सूर्य का कोरोना भी दिखाई देता है, जो वैज्ञानिकों के लिए शोध का अद्भुत अवसर होता है।
कई बार चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह नहीं ढक पाता, बल्कि उसका केवल कुछ भाग ही ढका होता है। इस स्थिति में सूर्य की किरणें आंशिक रूप से पृथ्वी तक पहुँचती रहती हैं इसलिए वातावरण में हल्का-सा धुंधलापन या प्रकाश का कम होना महसूस होता है। ज्यादातर लोग इसी प्रकार का ग्रहण देखते हैं।
कभी-कभी चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच तो आ जाता है, लेकिन उस समय चंद्रमा पृथ्वी से थोड़ा अधिक दूरी पर होता है। दूरी बढ़ने के कारण उसका आकार सूर्य की तुलना में थोड़ा छोटा दिखाई देता है। ऐसे में चंद्रमा सूर्य के बीच वाले हिस्से को ढक लेता है, पर बाहरी किनारे चमकते हुए अंगूठी (Ring of Fire) की तरह दिखाई देते हैं। इस अद्भुत दृश्य को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं। यह प्रकृति का एक अत्यंत सुंदर, विलक्षण और प्रभावशाली रूप है।
आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से भारतीय परंपरा में सूर्य ग्रहण को ऊर्जा-परिवर्तन का समय माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में प्रकृति की सूक्ष्म तरंगों में बदलाव आता है। इस समय ध्यान, जप, प्रार्थना और आत्ममंथन का विशेष महत्व होता है। ग्रहण को आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का विशेष अवसर भी माना गया है।
यदि आप ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने के इच्छुक हैं, तो सूर्य ग्रहण आपके लिए अनोखी सीख और ज्ञान का माध्यम बन सकता है। एस्ट्रोसेज एआई आपको सूर्य ग्रहण 2026 के दिन, तिथि, समय, दृश्यता, ज्योतिषीय प्रभाव और उपायों से संबंधित हर महत्वपूर्ण जानकारी सटीक और सरल भाषा में प्रदान करेगा, ताकि आप इस खगोलीय घटना को केवल देख ही न सकें, बल्कि इसके गहरे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व को भी समझ सकें।
चंद्रग्रहण , ठीक सूर्यग्रहण की तरह, ब्रह्मांड की उन अद्भुत खगोलीय घटनाओं में से एक है जिसके पीछे अत्यंत सूक्ष्म वैज्ञानिक गणनाएं और ग्रहों की पूर्ण सामंजस्ययुक्त गति काम करती है। जैसे सूर्य ग्रहण में चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच स्थित होता है, उसी प्रकार जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के ठीक मध्य आ जाती है और सूर्य का प्रकाश सीधे चंद्रमा तक पहुँचने से रुक जाता है, तब जो मनोहर और रहस्यमयी दृश्य निर्मित होता है, उसे चंद्रग्रहण कहा जाता है।
जब चंद्रमा अपनी कक्षा में घूमते हुए पृथ्वी के ठीक पीछे स्थित हो जाता है और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने लगती है, तब चंद्रमा सूर्य के प्रकाश से वंचित हो जाता है। यही वह क्षण है जिसे वैज्ञानिक भाषा में Lunar Eclipse कहते हैं। यह घटना केवल पूर्णिमा के दिन ही संभव है, क्योंकि उसी समय सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के दोनों ओर एक सीधी रेखा में स्थित होते हैं।
चंद्रग्रहण कई रूपों में दिखाई देता है, और इन सभी रूपों का अपना वैज्ञानिक तथा ज्योतिषीय महत्व होता है।
जब चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की गहरी छाया (Umbra) में प्रवेश कर जाता है, तो सूर्य का प्रकाश पूर्णतः अवरुद्ध हो जाता है। ऐसे समय में चंद्रमा एक अद्भुत लालिमा लिए हुए दिखाई देता है, जिसे लोग अक्सर Blood Moon भी कहते हैं। यह दृश्य वैज्ञानिकों और आध्यात्मिक साधकों दोनों के लिए अत्यंत आकर्षक होता है।
जब चंद्रमा का केवल एक भाग पृथ्वी की मुख्य छाया में प्रवेश करता है, और शेष भाग उज्ज्वल बना रहता है, तब यह स्थिति आंशिक चंद्र ग्रहण कहलाती है। इस अवस्था में चंद्रमा का एक हिस्सा कटा-सा या धुंधला-सा दिखाई देता है।
कभी-कभी चंद्रमा पृथ्वी की सीधी छाया में नहीं आता, बल्कि उसकी उपच्छाया (Penumbral) से होकर गुजरता है। इस स्थिति में चंद्रमा का कोई हिस्सा स्पष्ट रूप से ग्रसित नहीं होता, केवल उसकी चमक कुछ हद तक फीकी या धुँधली दिखाई देती है। यही कारण है कि इसे पारंपरिक रूप से ग्रहण की मान्यता नहीं दी जाती , पर वैज्ञानिक रूप से यह अत्यंत रोचक घटना मानी जाती है।
आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से भारतीय परंपराओं में चंद्र ग्रहण को ऊर्जा-परिवर्तन, मन की शुद्धि और आध्यात्मिक साधना का विशेष समय माना जाता है। मान्यता है कि ग्रहण के समय वातावरण में सूक्ष्म तरंगें सक्रिय हो जाती हैं, जिससे जप, ध्यान, प्रार्थना और आध्यात्मिक अभ्यास का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। यह समय आत्ममंथन, नकारात्मकताओं का त्याग और नई सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने का उपयुक्त क्षण माना गया है।
यदि आप खगोल विज्ञान, ज्योतिष, अध्यात्म या ब्रह्मांड के रहस्यों के प्रति उत्सुक हैं, तो चंद्र ग्रहण आपके लिए ज्ञान का एक स्वर्णिम अवसर है। एस्ट्रोसेज एआई आपको चंद्र ग्रहण 2026 से संबंधित सटीक दिन, तिथि और समय, दृश्यता के क्षेत्र, वैज्ञानिक कारण, धार्मिक महत्व, ज्योतिषीय प्रभाव और जीवन में लाभ प्राप्त करने हेतु प्रभावी उपाय, सब कुछ एक ही आलेख में विस्तारपूर्वक प्रदान कर रहा है।
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जब भी हम सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण की चर्चा करते हैं, तो एक शब्द स्वाभाविक रूप से हमारे मन में उभर आता है सूतक काल । सूतक केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक ऐसा विशेष समय है जिसे प्राचीन भारतीय ज्ञान, ज्योतिष और आध्यात्मिक परंपराओं में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इसे वह अवधि कहा जाता है जब प्रकृति की सूक्ष्म ऊर्जा-तरंगों में विशेष परिवर्तन होते हैं, और जिनका मनुष्य के मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्तरों पर प्रभाव महसूस किया जा सकता है।
यद्यपि सूतक एक धार्मिक अवधारणा है, परंतु इसके पीछे गहन वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण भी निहित हैं। ग्रहण के समय सूर्य या चंद्रमा का प्रकाश आंशिक या पूर्ण रूप से अवरुद्ध हो जाता है, जिसके कारण वातावरण में विकिरण (radiation), तापमान और ऊर्जा में सूक्ष्म परिवर्तन दर्ज किए जाते हैं। यही कारण है कि प्राचीन काल से इस अवधि में सावधानी बरतने की परंपरा चली आ रही है।
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण दोनों के लिए सूतक की अवधि अलग-अलग निर्धारित की गई है:
सूर्यग्रहण प्रारंभ होने से लगभग 4 प्रहर पूर्व , अर्थात लगभग 12 घंटे पहले सूतक काल आरंभ हो जाता है। इस दौरान प्राकृतिक ऊर्जा का स्तर बदलता है और इसे विशेष वर्जनाओं (restrictions) का समय माना जाता है।
चंद्रग्रहण प्रारंभ होने से लगभग 3 प्रहर पूर्व , अर्थात् लगभग 9 घंटे पहले सूतक आरंभ होता है।
सूतक काल ग्रहण की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो जाता है।
सूतक काल में क्या करें और क्या न करें?
परंपराओं के अनुसार, सूतक को अशुभ या संवेदनशील समय माना जाता है, इसलिए इस अवधि में कुछ नियमों का पालन करने की सलाह दी जाती है:
कोई भी मांगलिक या शुभ कार्य
विवाह, गृह प्रवेश या नया कार्य प्रारंभ करना
भोजन पकाना या अनावश्यक रूप से बाहर जाना
गर्भवती महिलाओं को विशेष सतर्कता बरतने की सलाह दी जाती है क्योंकि इस समय किए गए शुभ कार्यों के फल बाधित हो सकते हैं और मनचाहे परिणाम प्राप्त नहीं होते।
ग्रहण आरंभ होने से पहले स्नान करना
ग्रहण के दौरान ध्यान, जप, स्तोत्र-पाठ, हवन या मंत्र साधना करना
ग्रहण समाप्त होने के बाद फिर से स्नान करके शरीर और मन की शुद्धि करना
आवश्यक होने पर दान-पुण्य करना, जिसे अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
आध्यात्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि ग्रहण के दौरान किए गए मंत्र जाप और साधनाएं सामान्य दिनों की तुलना में कई गुना प्रभावी हो जाती हैं, क्योंकि उस समय वातावरण की सूक्ष्म ऊर्जा अत्यधिक सक्रिय रहती है।
यह विशेष रूप से स्मरणीय है कि ग्रहण समाप्त होने के पश्चात तभी सूतक समाप्त माना जाता है जब व्यक्ति स्नान करके पूर्ण शुद्धि प्राप्त कर लेता है । स्नान, ध्यान, और दानादि करने के पश्चात ही सूतक की निवृत्ति मानी गई है।
अब हम आपको विस्तार से बताते हैं कि वर्ष 2026 में कौन-कौन से ग्रहण पड़ेंगे। कब लगेगा सूर्य ग्रहण और कब होगा चंद्रग्रहण:
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यदि हम वर्ष 2026 में लगने वाले सूर्य ग्रहण 2026 (Surya Grahan 2026) की बात करें तो इस वर्ष दो सूर्य ग्रहण लगने वाले हैं। पहला सूर्य ग्रहण 17 फरवरी 2026 को और दूसरा सूर्य ग्रहण 12 अगस्त 2026 को लगेगा। दोनों ही सूर्य ग्रहण भारतवर्ष में दिखाई नहीं देंगे। अब आइए इन दोनों सूर्य ग्रहण की विस्तार से जानकारी लेते हैं:-
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पहला सूर्य ग्रहण 2026 - कंकण सूर्यग्रहण |
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तिथि |
दिन तथा दिनांक |
सूर्य ग्रहण प्रारंभ समय |
सूर्य ग्रहण समाप्त समय |
दृश्यता का क्षेत्र |
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फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष अमावस्या |
मंगलवार, 17 फरवरी 2026 |
दोपहर 15:26 बजे से |
रात्रि 19:57 बजे तक |
साउथ अफ्रीका, बोत्सवाना, जांबिया, जिंबाब्वे, मोजांबिक, दक्षिण अफ्रीका के दक्षिणी देशों, नामीबिया, मॉरीशस, तंजानिया, दक्षिणी अमेरिका के दक्षिणी देशों चिली और अर्जेंटीना, आदि और अंटार्कटिका (भारत में दृश्यमान नहीं) |
नोट: उपरोक्त तालिका में दिया गया ग्रहण 2026 (Grahan 2026) का समय भारतीय समय अनुसार है। यह सूर्य ग्रहण भारत में दृश्य मान नहीं होगा इसलिए भारत में सूर्य ग्रहण का कोई भी धार्मिक प्रभाव नहीं होगा और न ही इसका सूतक काल प्रभावी होगा।
वर्ष 2026 का पहला सूर्य ग्रहण 17 फरवरी 2026 को मंगलवार के दिन लगेगा। यह एक कंकण सूर्यग्रहण होगा। यह ग्रहण 2026 (Grahan 2026) कुंभ राशि और धनिष्ठा नक्षत्र में घटित होगा।
सूर्य ग्रहण 2026 (LINK) के बारे में यहां विस्तार से जानें।
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दूसरा सूर्य ग्रहण 2026 - खग्रास सूर्यग्रहण |
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तिथि |
दिन तथा दिनांक |
सूर्य ग्रहण प्रारंभ समय |
सूर्य ग्रहण समाप्त समय |
दृश्यता का क्षेत्र |
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श्रावण मास कृष्ण पक्ष अमावस्या |
बुधवार, 12 अगस्त 2026 |
रात्रि काल 21:04 बजे से |
मध्यरात्रि उपरांत 4:25 बजे तक |
अधिकांश यूरोपीय देशों कनाडा, रूस का उत्तर पूर्वी क्षेत्र, उत्तर पश्चिम अफ्रीका के देश। खग्रास रूप से ग्रीनलैंड, आइसलैंड, आर्कटिक, उत्तरी स्पेन, अटलांटिक महासागर, पुर्तगाल के सुधार उत्तर पूर्वी क्षेत्र में, खंड ग्रास के रूप में फ्रांस, ब्रिटेन, यूरोप के अधिकतर देशों और इटली में (भारत में दृश्यमान नहीं) |
नोट: उपरोक्त तालिका में दिया गया ग्रहण 2026 (Grahan 2026) का समय भारतीय समय अनुसार है। यह सूर्य ग्रहण भारत में दृश्य मान नहीं होगा इसलिए भारत में सूर्य ग्रहण का कोई भी धार्मिक प्रभाव नहीं होगा और न ही इसका सूतक काल प्रभावी होगा।
साल 2026 का दूसरा सूर्य ग्रहण एक कंकणाकृति सूर्यग्रहण होगा जो कि 12 अगस्त 2026 बुधवार के दिन लगेगा। यह सूर्य ग्रहण कर्क राशि और अश्लेषा नक्षत्र में लगेगा।
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यदि हम वर्ष 2026 में लगने वाले चंद्र ग्रहण 2026 (Chandra Grahan 2026) की बात करें, तो इस वर्ष में केवल दो चंद्र ग्रहण लगेंगे। पहला चंद्र ग्रहण 3 मार्च 2026 को लगेगा और दूसरा चंद्र ग्रहण 28 अगस्त 2026 को लगेगा। इनमें से केवल पहला चंद्रग्रहण ही भारतवर्ष में दृश्यमान होगा।
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पहला चन्द्र ग्रहण 2026 - खग्रास चंद्रग्रहण |
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तिथि |
दिन तथा दिनांक |
चन्द्र ग्रहण प्रारंभ समय |
चन्द्र ग्रहण समाप्त समय |
दृश्यता का क्षेत्र |
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फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा |
मंगलवार, 3 मार्च 2026 |
दोपहर 15:20 बजे से |
सायंकाल 18:47 बजे तक |
पश्चिम एशिया के देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक, ईरान, आदि के अतिरिक्त लगभग संपूर्ण एशिया में, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, दक्षिणी एवं उत्तरी अमेरिका और रूस में दृश्यमान होगा। भारत में यह खग्रास चंद्र ग्रहण ग्रस्तोदय के रूप में दिखेगा क्योंकि भारत के किसी भी क्षेत्र में जब चंद्रोदय होगा, उससे काफी पहले ही यह खग्रास चंद्र ग्रहण प्रारंभ हो चुका होगा इसलिए भारत के किसी भी क्षेत्र में इस खग्रास चंद्र ग्रहण का प्रारंभ देखा नहीं जा सकेगा । भारत के केवल पूर्वी सुदूर राज्यों जैसे बंगाल के उत्तरी पूर्वी क्षेत्र, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर, असम, अरुणाचल प्रदेश, आदि में इस ग्रहण की खग्रास समाप्ति तथा ग्रहण समाप्ति देखी जा सकती है। इसके अतिरिक्त शेष भारत में जब चंद्रोदय होगा तब तक खग्रास समाप्त हो चुका होगा तथा केवल ग्रहण समाप्ति ही दृष्टिगोचर होगी। |
नोट: उपरोक्त तालिका में दिया गया ग्रहण 2026 (Grahan 2026) का समय भारतीय समय अनुसार है। यह चन्द्र ग्रहण भारत में दृश्य मान होगा इसलिए भारत में इस चन्द्र ग्रहण का धार्मिक प्रभाव भी होगा और इसका सूतक काल भी प्रभावी होगा। यह इस वर्ष का एकमात्र ऐसा ग्रहण है जो भारत में देखा जा सकेगा।
3 मार्च 2026 को लगने वाला यह चंद्र ग्रहण एक खग्रास चंद्रग्रहण है जिसे पूर्ण चंद्र ग्रहण भी कह सकते हैं। यह खग्रास चंद्र ग्रहण सिंह राशि और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में घटित होगा। इस ग्रहण का सूतक काल 3 मार्च 2026 को प्रातः काल 6:20 बजे से प्रारंभ हो जाएगा और ग्रहण समाप्ति के साथ ही समाप्त होगा।
चन्द्र ग्रहण 2026 (LINK) के बारे में यहां विस्तार से जानें।
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दूसरा चन्द्र ग्रहण 2026 - खण्डग्रास चंद्र ग्रहण |
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तिथि |
दिन तथा दिनांक |
चन्द्र ग्रहण प्रारंभ समय |
चन्द्र ग्रहण समाप्त समय |
दृश्यता का क्षेत्र |
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श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा |
शुक्रवार, 28 अगस्त 2026 |
प्रात: काल 8:04 बजे से |
दोपहर 11:22 बजे तक |
अफ्रीका, उत्तर दक्षिण अमेरिका और यूरोप के अधिकतर क्षेत्रों, दक्षिणी पश्चिमी एशिया के देशों, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, ईरान, सऊदी अरब, शारजाह, हिंद-प्रशांत महासागर (भारत में दृश्यमान नहीं) |
नोट: उपरोक्त तालिका में दिया गया ग्रहण 2026 (Grahan 2026) का समय भारतीय समय अनुसार है। यह चन्द्र ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं होगा इसलिए इसका कोई भी सूतक या धार्मिक प्रभाव मान्य नहीं होगा। यह ग्रहण कुंभ राशि और शतभिषा नक्षत्र में लगेगा।
उपरोक्त खण्डग्रास चंद्रग्रहण श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को शुक्रवार के दिन 28 अगस्त 2026 को लगेगा। यह ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं है इसलिए इसका कोई सूतक भी मान्य नहीं होगा और न ही इसका कोई धार्मिक प्रभाव होगा इसलिए इस ग्रहण के दौरान आप सभी कार्य निर्विवाद रूप से संपादित कर सकते हैं।
इस प्रकार वर्ष 2026 में कुल मिलाकर मुख्य चार ग्रहण होंगे जिसमें दो सूर्य ग्रहण होंगे और दो चंद्रग्रहण होगा। उपरोक्त सभी में केवल 3 मार्च 2026 का ग्रस्तोदय खग्रास चंद्र ग्रहण ही भारत में दृष्टिगोचर होगा।
ग्रहण केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि प्रकृति और जीवन पर प्रभाव डालने वाला विशेष समय है। इस दौरान हमारे आसपास की ऊर्जा और वातावरण की सूक्ष्म तरंगें बदल जाती हैं इसलिए प्राचीन भारतीय परंपरा में ग्रहण काल को विशेष सावधानी और आध्यात्मिक अभ्यास के लिए अनुकूल समय माना गया है। आइए विस्तार से जानते हैं कि ग्रहण के समय क्या करें और क्या नहीं करना चाहिए।
सूर्य ग्रहण: लगभग 12 घंटे पूर्व
चंद्र ग्रहण: लगभग 9 घंटे पूर्व
जैसे ही ग्रहण का स्पर्श (आरंभ) होता है, अत्यंत महत्वपूर्ण है स्नान करना। ग्रहण के मोक्ष अर्थात समाप्ति के समय भी स्नान अवश्य करें । यह शुद्धिकरण का प्रमुख साधन है।
सूर्य ग्रहण के समय कभी भी नग्न आंखों से सूर्य को मत देखें , अन्यथा आंखों की रोशनी को गंभीर क्षति हो सकती है।
बच्चों, वृद्ध और रोगियों को ग्रहण के समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
मंदिर या धार्मिक स्थान में प्रवेश करना और मूर्ति स्पर्श करना।
भोजन करना, खासकर भारी और पकाई हुई चीजें।
मैथुन क्रिया या शारीरिक संबंध।
तेल मालिश करना।
बाल या नाखून काटना।
यात्रा करना, जब तक कि अति आवश्यक न हो।
केवल अति आवश्यक स्थिति में बच्चे, वृद्ध और रोगी आहार या आवश्यक औषधि ले सकते हैं।
ग्रहण काल में काटना, सिलना, बुनना या सोना वर्जित ।
उदर पर गाय के गोबर का पतला लेप लगाना।
सिर को पल्लू से ढकना और हल्का गेरु लगाना ।
मंत्र जाप और ध्यान करना।
दान करना।
श्राद्ध और यज्ञ करना।
किसी मंत्र या साधना को सिद्ध करना। ग्रहण काल में मंत्र जाप का सहस्त्र गुण प्रभाव माना गया है।
यदि परिवार में कोई अत्यधिक बीमार हो तो महामृत्युंजय मंत्र का निरंतर जाप और संकल्प सहित दान करना लाभकारी है।
ग्रहण समाप्त होते ही स्नान करें , चाहे दिन हो या रात।
ग्रहण काल में संकल्प लेकर ब्राह्मण या जरूरतमंद को दान दें।
यदि आपकी राशि या नक्षत्र पर ग्रहण पड़ रहा है, तो अपने राशि या नक्षत्र स्वामी ग्रह का मंत्र जाप करें।
सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य और राहु का , चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा और राहु का मंत्र जाप करें।
राशि के अनुसार दान करना अत्यंत लाभकारी ।
कांसे की कटोरी में थोड़ा घी भरकर तांबे का सिक्का डालकर मुंह देख कर दान देना लाभदायक।
ग्रहण के उपरांत औषधि स्नान भी ग्रहण के अशुभ प्रभाव को कम करता है।
ग्रहण केवल अंधकार और प्रकाश का खेल नहीं, बल्कि हमारे जीवन और मानसिक ऊर्जा पर प्रभाव डालने वाली अद्भुत घटना है। यदि आप ग्रहण 2026 के प्रभाव से स्वयं और परिवार को सुरक्षित, स्वस्थ और समृद्ध बनाना चाहते हैं, तो उपरोक्त उपायों और सावधानियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। ग्रहण का यह समय न केवल बचाव का है, बल्कि आध्यात्मिक साधना और पुण्य कमाने का भी सर्वोत्तम अवसर है।
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1. वर्ष 2026 में कितने सूर्य ग्रहण होंगे?
ग्रहण 2026 के अनुसार, साल 2026 में कुल 2 सूर्य ग्रहण लगेंगे।
2. वर्ष 2026 में कितने चंद्र ग्रहण होंगे?
ग्रहण 2026 के अनुसार, वर्ष 2026 में कुल 2 चंद्र ग्रहण होंगे।
3. वर्ष 2026 में कितने ग्रहण भारत में दिखाई देंगे?
नए साल अर्थात वर्ष 2026 में सिर्फ़ एक ग्रहण भारत में दिखाई देगा।