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वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह

ज्योतिष में मंगल एक क्रूर ग्रह है। मनुष्य जीवन के लिए यह बड़ा प्रभावकारी ग्रह है। मंगल दोष के कारण लोगों के विवाह में कठिनाई आती है। इसके हमारी जन्म कुंडली में स्थित सभी 12 भावों में इसका प्रभाव भिन्न होता है। उन प्रभावों को आप यहाँ विस्तृत रूप से जान सकते हैं।

वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह का प्रत्येक भाव में प्रभाव

मंगल प्रथम भाव में मंगल द्वितीय भाव में मंगल तृतीय भाव में मंगल चतुर्थ भाव में
मंगल पंचम भाव में मंगल छठें भाव में मंगल सप्तम भाव में मंगल अष्टम भाव में
मंगल नवम भाव में मंगल दशम भाव में मंगल एकादश भाव में मंगल द्वादश भाव में

ज्योतिष में मंगल ग्रह का महत्व

मंगल को वैदिक ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह ऊर्जा, भाई, भूमि, शक्ति, साहस, पराक्रम, शौर्य का कारक होता है। मंगल ग्रह को मेष और वृश्चिक राशि का स्वामित्व प्राप्त है। यह मकर राशि में उच्च होता है, जबकि कर्क इसकी नीच राशि है। वहीं नक्षत्रों में यह मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामी होता है। गरुण पुराण के अनुसार मनुष्य के शरीर में नेत्र मंगल ग्रह का स्थान है। यदि किसी जातक का मंगल अच्छा हो तो वह स्वभाव से निडर और साहसी होगा तथा युद्ध में वह विजय प्राप्त करेगा। लेकिन यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में मंगल अशुभ स्थिति में बैठा हो तो जातक को विविध क्षेत्रों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मंगल ग्रह लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है।

मंगल ग्रह के कारण कुंडली में बनता है मांगलिक दोष

मांगलिक दोष मनुष्य जीवन के दांपत्य जीवन को प्रभावित करता है। मंगल दोष व्यक्ति के विवाह में देरी अथवा अन्य प्रकार की रुकावटों का कारण होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में मंगल ग्रह प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में बैठा हो तो यह स्थिति कुंडली में मांगलिक दोष का निर्माण करती है। इसके प्रभावों को कम करने के लिए जातक को मंगल दोष के उपाय करने चाहिए।

ज्योतिष के अनुसार मनुष्य जीवन पर मंगल का प्रभाव

शारीरिक बनावट एवं स्वभाव - जन्म कुंडली में लग्न भाव में मंगल ग्रह व्यक्ति के चेहरे में सुंदरता एवं तेज़ लाता है। व्यक्ति उम्र के हिसाब से युवा दिखाई देता है। यह जातक को पराक्रमी, साहसी और निडर बनाता है। लग्न में मंगल के प्रभाव से व्यक्ति अभिमान भी होता है। वह किसी प्रकार के दबाव में रहकर कार्य नहीं करता है। शारीरिक रूप से व्यक्ति बलवान होता है। व्यक्ति का स्वभाव क्रोधी होता है। ऐसे जातकों की सेना, पुलिस, इंजीनियरिंग क्षेत्र में रुचि होती है। मंगल का लग्न भाव होना मंगल दोष भी बनाता है।

बली मंगल के प्रभाव - मंगल की प्रबलता से व्यक्ति निडरता से अपने निर्णय लेता है। वह ऊर्जावान रहता है। इससे जातक उत्पादक क्षमता में वृद्धि होती है। विपरीत परिस्थितियों में भी जातक चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार करता है और उन्हें मात भी देता है। बली मंगल का प्रभाव केवल व्यक्ति के ही ऊपर नहीं पड़ता है, बल्कि इसका प्रभाव व्यक्ति के पारिवारिक जीवन पर पड़ता दिखाई देता है। बली मंगल के कारण व्यक्ति के भाई-बहन अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति करते हैं।

पीड़ित मंगल के प्रभाव - यदि मंगल ग्रह कुंडली में कमज़ोर अथवा पीड़ित हो तो यह जातक के लिए समस्या पैदा करता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को किसी दुर्घटना का सामना करना पड़ता है। पीड़ित मंगल के कारण जातक के पारिवारिक जीवन में भी समस्याएं आती हैं। जातक को शत्रुओं से पराजय, ज़मीन संबंधी विवाद, क़र्ज़ आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

रोग - कुंडली में मंगल पीड़ित हो तो व्यक्ति को विषजनित, रक्त संबंधी रोग, कुष्ठ, ख़ुजली, रक्तचाप, अल्सर, ट्यूमर, कैंसर, फोड़े-फुंसी, ज्वार आदि रोक होने की संभावना रहती है।

कार्यक्षेत्र - सेना, पुलिस, प्रॉपर्टी डीलिंग, इलेक्ट्रॉनिक संबंधी, इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग, स्पोर्ट्स आदि।

उत्पाद - मसूर दाल, रेल वस्त्र, ज़मीन, अचल संपत्ती, विद्युत उत्पाद, तांबें की वस्तुएँ आदि।

स्थान - आर्मी कैंप, पुलिस स्टेशन, फायर बिग्रेड स्टेशन, युद्ध क्षेत्र आदि।

पशु व पक्षी - मेमना, बंदर, भेड़, शेर, भेड़िया, सूअर, कुत्ता, चमगादड़ एवं सभी लाल पक्षी आदि।

जड़ - अनंत मूल

रत्न - मूंगा

रुद्राक्ष - तीन मुखी रुद्राक्ष

यंत्र - मंगल यंत्र

रंग - लाल।

मंगल ग्रह की शांति के लिए मंगलवार का व्रत धारण करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें। इसके अलावा मंगल से संबंधित इन मंत्रों का जाप करें-

मंगल का वैदिक मंत्र -
ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्।
अपां रेतां सि जिन्वति।।


मंगल का तांत्रिक मंत्र -
ॐ अं अंङ्गारकाय नम:

मंगल का बीज मंत्र -
ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः

खगोल विज्ञान में मंगल ग्रह

खगोल विज्ञान के अनुसार, मंगल ग्रह में आयरन ऑक्साइड की मात्रा सर्वाधिक है और इसलिए इसे लाल ग्रह कहा जाता है। यह पृथ्वी के समान ही स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। विश्व के वैज्ञानिक समाज को मंगल ग्रह में जीवन की संभावना दिखाई देती हैं। हालाँकि निम्न वायुदाब के कारण मंगल पर तरल जल का अभाव है।

मंगल ग्रह का धार्मिक व पौराणिक महत्व

हिन्दू धर्म के अनुसार मंगल ग्रह को मंगल देव का प्रतिनिधित्व माना जाता है, जो एक युद्ध के देवता है। संस्कृत में इन्हें भौम अर्थात भूमि का पुत्र कहा गया है। शास्त्रों में मंगल देव के स्वरूप का वर्णन करते हुए उनकी चार भुजाएँ बतायी गई हैं। वह अपने एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में गदा, तीसरे हाथ में कमल तथा चौथे हाथ में शूल लिए हुए हैं और भेड़ उनकी सवारी है। इसके साथ ही मंगल ग्रह का संबंध हनुमान जी भी है। मंगलवार के जातक हनुमान जी का व्रत धारण करते हैं। हनुमान जी अपने भक्तों की भूत-पिशाच से रक्षा करते हैं।

भले ही मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह कहा जाता है। परंतु आप सोचिए, जिस ग्रह का नाम ही मंगल है वह किसी के लिए अमंगल कैसे हो सकता है। हम जानते हैं कि सभी ग्रह के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रभाव मनुष्य जीवन पर पड़ते हैं। उन नौ ग्रहों में मंगल ग्रह भी एक है।

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